15.12.06

हाफ पैन्ट वाले कहना असभ्यता का परिचय

वर्तमान समाज में से विनम्रता का लोप इस कदर हो गया है कि वैचारिक असहमति होने मात्र से लोग गाली-गलौज पर उतर आते हैं। काफी हद तक तो इस प्रकार का असंयमित व्यवहार राजनेता ही करते हुए पाए जाते है। पर अभी हाल ही में एक अराजनैतिक सज्जन गान्धी जी को बुड्डा कहते हुए मिले। उम्र के लिहाज से व बड़े होने के नाते गान्धी जी को बुड्डा कहना असभ्यता ही कही जा सकती है। कर्मों के लिहाज से गान्धी जी बुड्डे हुए ही नहीं; वो चिर युवा थे। जीवन पर्यन्त युवकों को भी शर्मिन्दा कर जाए ऐसी कर्मठता से काम करते रहे।

खैर यह लेख लिखने का उद्देश्य सिर्फ यह याद दिलाना है कि हम वैचारिक मतभेदों को व्यक्तिगत मतभेदों का रूप देने से बचें। कहा जाता है कि जब गम्भीर चर्चाओं के दौरान आप व्यक्तिगत हमला करने लगते हो तो इसका अर्थ है कि आप चर्चा में हार चुके हो। जैसे खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचती है वैसे आप सामने वाले को नोचने लगते हो।

हाल ही में एक मित्र ने ध्यान दिलाया कि एक जिम्मेदार व्यक्ति जो राजनीति में भी सक्रिय हैं वो राष्ट्रीय स्वंसेवक संघ को हाफ पैण्ट कह कर सम्बोधित करते हैं। संघ को काफी नजदीक से मैंने भी देखा है व मेरी दृष्टि में संघ के लिए बहुत आदर है। राष्ट्रभक्ति, समाज सेवा, किसी आपदा के समय पीड़ितों की सेवा, वनवासी क्षेत्रों में सेवा कार्य, हिन्दू समाज के उत्थान के लिए अहर्निश प्रयत्नशील, इत्यादि अनेक प्रकल्पों में आदरणीय कार्य करने का श्रेय इस संगठन को दिया जा सकता है। ऐसे सैकड़ों स्वयंसेवक आज भी सेवारत हैं जिन्होंने अपना परिवार छोड़कर आजीवन अविवहित रहते हुए देश सेवा करने का व्रत लिया हुआ है। जब कोई देश के राजनेताओं से त्रस्त होकर कहता है कि भारत को तो भगवान ही चला रहा है तो मेरे मन में इन्हीं सर्वत्यागी व दृढ़निश्चयी जवानों का खयाल आता है। ऐसे स्वयंसेवी लोगों को हाफ पैण्ट कह कर सम्बोधित करना अशोभनीय ही नहीं असभ्य भी है। फिर ऐसी असभ्यता प्रतिक्रियाओं को भी जन्म देती है जिससे समाज में आपसी सौहार्द घटने लगता है।

4.12.06

हमें मदद चाहिए

भाषा एवं शिक्षा के सम्बन्ध में विचार करते समय मन में अनेक प्रश्नों का जन्म हुआ। जैसे कि −

• भारत में शिक्षा के लिए मातृभाषा का माध्यम ज्यादा ठीक है या अंग्रेजी (विदेशी) भाषा का माध्यम बेहतर है?
• क्या मातृभाषा में शिक्षा पाने से गणित एवं विज्ञान विषयों को समझने में सहायता मिलती है?
• क्या अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा देना अंग्रेजी भाषा पर मजबूत पकड़ की गारण्टी है?
• क्या अंग्रेजी शिक्षा को अनिवार्य बनाने से बच्चों की शिक्षा पर खराब असर पड़ सकता है?

इन प्रश्नों का समाधान करने के लिए हमें निम्नलिखित जानकारी की आवश्यकता है। यह काम अकेले हमारे बस का नहीं है, इसलिए यदि आप मदद कर सकते हैं तो कृपया सम्पर्क करें।

1) पिछले दस वर्षों के दौरान भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IITs) में प्रथम 10 स्थान पाने वाले छात्रों को किस माध्यम में शिक्षा मिली थी? यदि एक से अधिक माध्यमों से शिक्षा मिली हो तो पांचवी से दसवीं कक्षा के छ: वर्षों के दौरान अधिकांश शिक्षा जिस माध्यम से मिली थी, उसी को शिक्षा का माध्यम माना जाए।

2) ऊपर लिखी जानकारी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IITs) में ही प्रथम 50 स्थान पाने वाले छात्रों के लिए भी एकत्रित करनी है।

3) ऊपर लिखी जानकारी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) या केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) मेडिकल प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले छात्रों की भी एकत्रित करनी है।

4) विज्ञान व गणित के शिक्षकों का अनुभव क्या कहता है − क्या शिक्षा के माध्यम से छात्रों की योग्यता पर असर पड़ता है?

5) यदि आप किसी ऐसे छात्र को जानते हैं जो पढ़ तो अपनी मातृभाषा में रहा है, लेकिन अंग्रेजी विषय में कमजोरी के कारण पढ़ाई से विरक्त हो रहा है, तो कृपया हमें उसका नाम व पता भेजिए।

6) ऐसे छात्रों की कमी नहीं जो अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने के बावजूद अंग्रेजी ठीक से नहीं बोल पाते। ऐसे छात्रों से बात करके उनसे पूछना है कि इस का क्या कारण है। यह कारण, छात्र का नाम, पता व कक्षा हमें भेजिए। इस जानकारी के लिए वें ही छात्र चुने जाएं जो कम से कम 5 वर्ष अंग्रेजी माध्यम में पढ़े हों।

7) यदि इस विषय पर पहले से ही कोई भारतीय अथवा विदेशी सर्वेक्षण हुआ हो कृपया उसकी जानकारी भी हमें भेजें।

इस जानकारी के एकत्रित होने पर हम इसे पुस्तक के रूप में व इन्टरनेट पर प्रकाशित करेंगे। हमारा विश्वास है कि यह जानकारी छात्रों व अभिभावकों के लिए अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होगी।