3.4.08

हिन्दी में MBA, यानी बेहतर concepts?

भाई, आम तौर पर तो यही माना जाता है कि हिन्दी में MBA पढोगे तो देश विदेश में छपने वाले ज्ञान से वंचित भी रह जाओगे और नौकरी भी नहीं मिलेगी। लेकिन व्यवसायिक जगत शायद ऐसा नहीं मानता।

वर्धा के प्रसिद्ध विश्व विद्यालय ने जब हिन्दी भाषा में MBA शुरू की, तो पेंतालून के Managing Director किशोर बियानी जी ने कहा, "अपनी भाषा में शिक्षा पाना सदा ही अच्छा होता है। Concepts की समझ भी बेहतर बनती है। यदि पाठ्यक्रम अंग्रेजी में होने वाली MBA के बराबर का होगा तो ऐसे प्रत्याशियों के चयन में कोई समस्या नहीं आएगी"।

सामान्य जनों के लिए ये अनोखी बात हो सकती है। कुछ लोग इसे ऐसे लोगों की मूर्खता समझेंगे जो अपनी भाषा को आज भी पकड़ कर बैठे हैं और दुनिया की धारा से उलट चलने में अपनी ऊर्जा गँवा रहे हैं। कुछ लोग इस पर गर्व भी महसूस करेंगे। कुछ लोग इस घटना को भारतीय जनों की सिर्फ़ एक दबी हुई भावना की सुखद अभिव्यक्ति मानेंगे। किसी भी दृष्टि से इसको देखें, पर एक बात से कोई इनकार नही कर सकता कि ज्ञान और भाषा दो अलग अलग बातें हैं, और आज कल की अंधी दौड़ में ज्ञान और अंग्रेजी भाषा को एक ही बात मान लिया गया है। वर्धा विश्व विद्यालय का ये साहसिक कदम समाज में फैली हुई इस अवधारणा को दूर करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा कि उच्च शिक्षा सिर्फ़ अंग्रेजी में ही पायी जा सकती है।

वर्धा से पहले ही हैदराबाद के एक विश्व विद्यालय ने उर्दू माध्यम में MBA दी थी और उसके १००% छात्रों को नौकरी भी मिल गयी थी। ICICI के कार्पोरेट संचार समूह के मुखिया चारुदत्त देशपांडे जी का कहना है, "वित्त उद्योग में अंग्रेजी कि अनिवार्यता का कोई पवित्र नियम नहीं है। यहाँ पर सब अंकों (गणित) का काम है। यदि concepts स्पष्ट हैं तो नौकरियों में चयन में कोई समस्या नहीं होगी। वास्तव में front office कि नौकरियों के लिए तो स्थानीय भाषा में MBA पढने वाले लाभ की स्थिति में ही रहेंगे।"

पूरा समाचार यहाँ देखिये: http://www.dnaindia.com/report.asp?newsid=1156781&pageid=2



5 टिप्‍पणियां:

अनुनाद सिंह ने कहा…

"ज्ञान और भाषा दोनो अलग-अलग चीजें हैं" बहुत सही बात कही है आपने। आपके द्वारा दिये गये कुछ विद्वानों और विशेषज्ञों के विचार भी परिपक्व लगे।

आप इतने दिनो तक हिन्दी चिट्ठाकारी से दूर कैसे चले गये थे? आपकी कमी बहुत खल रही थी। पुन: आगमन पर स्वागत!

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

काफी दिनों बाद आपको पढ़ रहा हूँ, अच्‍छा लग रहा है। निरन्‍तर लिखा कीजिए

Abha ने कहा…

आपने बिलकुल सही कहा है कि ज्ञान और भाषा दोनों अलग अलग बातें हैं. देखा जाए तो कई देश जिन्हें हम developed मानते हैं जैसे जापान, चीन, फ्रांस, जर्मनी इत्यादी सब अपनी भाषा की ऊँगली पकड़ कर ही आगे बढे हैं. अपनी भाषा में शिक्षा से तो पूरा देश तरक्की में सहायक होता है लेकिन पराई भाषा अपनाने से सिर्क एक ही तबका साथ चल सकता है.

Abha ने कहा…

उम्मीद है आप अपना लेखन बढायेंगे. अपनी इस कला को भी वक़्त दें. इसे लुप्त ना होने दें.

Abc ने कहा…

ye baat sach hai ki apni bhasha mein padhai karne se concept sahi se samajh mein aate hein aur uska fayda bhi hota hai lekin aise duar mein jahan India mein sare kaam english mein ho rahe hein and India ek service hub ban gaya hai, thoda difficlut hota hai is baat ko samajh pana ki hindi implement kaise hogi. it is a uphill task.