गुरूकुल में नैतिक व धार्मिक शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाता था। गुरूकुल ने इसके लिए विशेष पुस्तकें भी तैयार करवाई थी एवं कुलपति स्वामी श्रद्धानन्द स्वयं इन विषयों पर छात्रों से वार्ता करते थे। छात्रों को पवित्र संस्कृत ग्रन्थो का पठन करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता था। छात्रों की पाठ्य सामग्री व दैनिक चर्या के आधार पर कहा जा सकता है कि गुरूकुल का वातावरण वेदों व उपनिषदों से लबालब था।
तमाम धार्मिक शिक्षा के साथ−साथ गुरूकुल का आचार्यवर्ग इस बात के लिए भी सजग था कि छात्र दुनिया में निरन्तर हो रही गतिविधियों, नवीन खोजों व उपलब्धियों से अनभिज्ञ न रहें। इसके लिए छात्रों के पाठ्यक्रम में पश्चिमी साहित्य व आधुनिक विज्ञान से सम्बन्धित पुस्तकों को न केवल स्थान दिया गया बल्कि छात्रों को गुरूकुल के पुस्तकालय के माध्यम से नवीनतम पुस्तकें व पत्रिकाएं उपलब्ध भी करवाई गईं।
फिल्पस ने गुरूकुल व अन्य संस्थाओं की दसवीं कक्षा के विद्यार्थियों के बीच तुलनात्मक विश्लेषण भी किया।
- विज्ञान - गुरूकुल के छात्र कईं वर्ष आगे हैं। भौतिकी, रसायन शास्त्र व मैकैनिक्स की अनेक गूढ़ पुस्तकों का अध्ययन गुरूकुल में होता है, अन्य संस्थानों में नहीं।
- गणित - गुरूकुल के छात्र अन्य संस्थानों के छात्रों के समकक्ष हैं।
- इतिहास - गुरूकुल के छात्रों ने भारतीय व ब्रिटिश इतिहास के 2000 पृष्ठ पढ़े हैं जबकि अन्य संस्थानों के छात्र 400 पृष्ठ ही पढ़ते हैं। इतिहास में यहां के छात्र अन्यत्र बी0ए0 के बराबर हैं।
- अंग्रेजी - दसवीं में गुरूकुल के छात्र अन्य संस्थानों की दसवीं से पीछे हैं। परन्तु चौदहवीं तक पहुंचते पहुंचते वें अन्य संस्थानों की चौदहवीं के समकक्ष हो जाते हैं।
- संस्कृत - गुरूकुल के छात्र बहुत आगे हैं। दसवीं के छात्रों की संस्कृत एम0ए0 (अंग्रेजी) के छात्रों की अंग्रेजी के बराबर की है।
- दर्शन व तर्क शास्त्र - गुरूकुल के छात्र अन्य विद्यालयों से श्रेष्ठ हैं।
फिल्पस लिखते हैं कि गुरूकुल के छात्रों के श्रेष्ठ होने की वजहों में से एक तो शिक्षा के अनुकूल प्राकृतिक वातावरण है, दूसरे वहां के जीवन में नियमितता व अनुशासन है और तीसरे शिक्षा का माध्यम हिन्दी है जिसे भारतीय छात्र आसानी से समझकर ग्रहण कर सकते हैं। हम स्पष्ट देख सकते हैं कि गुरूकुल के संस्थापक गुरूकुल को श्रेष्ठ मार्ग पर चला पा रहे थे। यही कारण था कि महान विभूतियां जैसे महात्मा गान्धी, भूतपूर्व ब्रिटिश प्रधानमन्त्री एन्ड्रयूज, डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद व जवाहर लाल नेहरू गुरूकुल से विशेष स्नेह रखते थे और इसलिये उन्होंने गुरूकुल की यात्राएं भी की।
इसके बावजूद गुरूकुल को सरकारी मदद न मिल सकती थी। ऐसा नहीं था कि गुरूकुल को विदेशी सरकार से मदद की अपेक्षा थी पर सामान्य तर्क तो यही कहता है कि समाजोपयोगी कार्य करने वाली ऐसी संस्थाओं को मदद दी जानी चाहिए। फिल्पस के अनुसार सरकारी मदद पाने के लिए गुरूकुल को संस्कृत के स्थान पर अंग्रेजी रखनी पड़ती, जो गुरूकुल को स्वीकार नहीं था। इसके साथ−साथ गुरूकुल को अपनी स्वयं की पुस्तकों के स्थान पर सरकारी पुस्तकें पढ़ानी पड़ती जो निश्चय ही गुरूकुल का सत्यानाश कर देतीं।
भारत में आदर्श शिक्षा पद्धति की खोज करने के इच्छुक व्यक्तियों से आग्रह है कि वो गुरूकुल कांगड़ी के इतिहास व उपलब्धियों का अध्ययन अवश्य करें।
1 टिप्पणी:
namasty aapka lekh padh kr herdye ko bahut achaa lagaa .eh janker khusi hui ki aap vides m rahty huy bhi bharat ko apny hardaya m basaye huyey hain. bahut achaa ho yadi aap apni gausaala m padharyen. dhanyavaad.
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