आज से पहले मैंने शेख अजीज का नाम भी नहीं सुना था। कश्मीर के बड़े अलगाववादी नेताओं का जिक्र आता है तो यासीन मालिक, गिलानी और मीरवायज आदि का ही नाम सामने आता है। शेख अजीज के बारे में कश्मीर के बाहर के लोग कम ही जानते हैं। वो हुर्रियत के एक वरिष्ठ नेता थे और हुर्रियत Executive Council में शामिल थे। आज पुलिस की गोली से वो घायल हो गए और श्रीनगर के एक हस्पताल में उनका निधन हो गया।
शेख अजीज भारत माता के सपूत शायद न कहे जा सकते हों। वो मुख्यधारा से अलग एक राजनैतिक दल में थे और कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग स्वीकार नहीं करते थे। अमरनाथ यात्रियों के लिए बेहतर इंतजाम करने के लिए जमीन देने से उनके अभिमान को ठेस लगी थी और उन्होंने इसका विरोध किया था। उनका तर्क था कि अमरनाथ यात्रियों को पहले से ही कश्मीरियों का सहयोग मिलता रहा है और भविष्य में भी यात्रियों को इस सहयोग के अतिरिक्त कुछ देने की आवश्यकता नहीं है। अभी कुछ साल पहले ही बर्फ के तूफ़ान से सैकडों यात्री हताहत हुए थे, उसकी याद हम भारतीयों को ही नहीं है तो इन अलगाववादी नेताओं से क्या उम्मीद करें? शेख अजीज ने कभी अमरनाथ यात्रा तो की नहीं, इसलिए उनको यात्रियों के कष्ट का अंदाजा नहीं लग पाया और बेहतर सुविधाओं का विरोध कर बैठे।
खैर, शेख अजीज आज नहीं रहे। उनको पुलिस की गोली तब लगी जब वो अपने समर्थकों के साथ मुजफ्फराबाद जा रहे थे। ये वही मुजफ्फराबाद है, जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की राजधानी है। मुझे लगता है कि मुजफ्फराबाद को भारत अपने क्षेत्र का हिस्सा मानता है, इसलिए शेख अजीज को भारत के ही किसी दूसरे हिस्से में जाने पर पुलिस को गोली चलाने की जरूरत नहीं थी। पर क्योंकि पाकिस्तान ने पिछले छ: दशक से मुजफ्फराबाद समेत हजारों वर्गमील जमीन पर कब्जा जमाया हुआ है, इसलिए शायद भारत सरकार को ऐसा लगा कि शेख अजीज वस्तुत: पाकिस्तान ही जा रहे हैं। ये भी हो सकता है की शेख अजीज कश्मीर के तथाकथित "आर्थिक बहिष्कार" के विरोध में मुजफ्फराबाद जा रहे थे, इसलिए सरकार उसे रोकना चाह रही हो। दो भाइयों के बीच मनमुटाव हो और एक भाई यदि दुश्मन के घर जाने लगेगा तो उसे कोई समझदार आदमी रोकेगा ही। भारत सरकार ने उन्हें समझाया, अपीलें की, यकीन दिलाया कि कोई "आर्थिक बहिष्कार" नहीं है, पर अपने मद में चूर हुर्रियत के नेताओं को लगा कि कश्मीरियों की भावनाओं को भड़काने और इसका राजनैतिक लाभ उठाने का इस से अच्छा मौका नहीं मिलेगा। वो मुजफ्फराबाद जाने की जिद में आगे बढे, पुलिस ने रोका पर जब हिंसा शुरू हो गयी तो पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा। शेख अजीज की दुखद मृत्यु इसी का परिणाम है।
मुझे मालूम है कि कश्मीर में जनता को तस्वीर का एक ही पहलू दिखाया जाएगा - "भारत की सेना और पुलिस की बर्बरता का एक और नमूना"। शेख अजीज अपने और हुर्रियत के दुराग्रह का शिकार हुए, ये सच बोलने की हिम्मत कश्मीर में किसी को नहीं है। एक जिम्मेदार और सत्यनिष्ठ व्यक्ति न तो अमरनाथ यात्रियों को अतिरिक्त सुविधाओं का विरोध करेगा और न ही घरेलू झगडों को लेकर दुश्मन से हाथ मिलाएगा, लेकिन हुर्रियत में न तो कोई जिम्मेदार नेता है और न ही सत्यनिष्ठ।
सच यही है कि अमरनाथ और आर्थिक बहिष्कार को लेकर किए गए इस झूठे प्रचार की जिम्मेदार बन्दूक संस्कृति है जिस वजह से घाटी में सच बोलने की हिम्मत कोई नहीं करता। शेख अजीज की मृत्यु का जिम्मेदार हुर्रियत का झूठा प्रचार और उनका दुराग्रह ही है।
2 टिप्पणियां:
जब तक तुष्टिकरण की बलिवेदी पर राष्ट्रीय हितों की बलि चढ़ायी जाती रहेगी, यही होगा। काश्मीर तिल-तिल कर पाकिस्तान की ओर खिसक रहा है। यदि वहाँसे धारा ३७० हटाकर उसे हिन्दू बहुल नहीं बनाया गया तब तक ऐसा ही होता रहेगा।
भगवान भारत को कोई अन्तर्दृष्टि-युक्त नेता प्रदान करे जो तुष्ड़ीकरण का स्थायी एवं कारगर हल प्रस्तुत कर सके; तभी भारत के कल्याण का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा।
आलेख तर्क संगत है। जो भीड पाकिस्तान के झंडे के साथ भारत-भूमि पर आन्दोलित होती है वह किस निगाह से देखी जाये? बटवारा 47 को हो चुका और अब इस ओर की आवाज राष्ट्रीय ध्वज के नीचे ही सुनी जा सकती है। अलगाववादी तो पहले ही अपराधी हैं..
***राजीव रंजन प्रसाद
एक टिप्पणी भेजें