4.11.06

मेरा पीड़ादायक अनुभव

दिल्ली से डेनमार्क लौट आया हूं। अपने पुत्र विष्णु को पूर्वी दिल्ली के किसी अच्छे हिन्दी माध्यम विद्यालय में दाखिल करवाने का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाया। अपने घर के नजदीक वसुन्धरा एन्कलेव इलाके के सब विद्यालयों में घूमा, पर मुझे एक भी हिन्दी माध्यम विद्यालय नहीं मिला। सभी अंग्रेजी माध्यम में ही शिक्षा दे रहे हैं। नोएडा में प्रयास किया तो सैक्टर 12 में विद्या भारती द्वारा संचालित एक हिन्दी माध्यम विद्यालय मिला, लेकिन उसकी बस वसुन्धरा एन्कलेव में नहीं आती। मेरी पत्नी, जिसे दिल्ली में मेरी अनुपस्थिति में 2 महीने बिताने हैं, को हर रोज विष्णु को छोड़ने जाना बहुत असुविधाजनक हो जाता। इसलिए मन मार कर विष्णु को घर के नजदीक वसुन्धरा एन्कलेव में ही एक अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में दाखिला करवा दिया। विष्णु को होने वाली दिक्कतों का हमें भली भान्ति अन्दाजा है क्योंकि आज की तारीख में विष्णु को A, B, C, D के अतिरिक्त बिल्कुल अंग्रेजी नहीं आती। गिनती भी उसे हिन्दी में ही आती है। परन्तु कोई अन्य हल नहीं दिखाई दिया जिससे विष्णु की शिक्षा तुरन्त शुरू हो सके।
अपनी पीड़ा को शब्दों में कैसे बयान करूं? दिल्ली की गर्मी में बच्चों को टाई लगाकर विद्यालय जाते हुए देखना अपने आप में एक श्राप है। उस पर अंग्रेजी माध्यम से मिलने वाली अधकचरी शिक्षा किसी भी प्रकार मुझे अपने पुत्र के बारे में निश्चिन्त नहीं कर पा रही है।
विष्णु को तो अगले साल हिन्दी माध्यम के विद्यालय में ही भेजूंगा। साथ ही मैंने निश्चय किया है कि
1. ज्यादा से ज्यादा लोगों को मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा देने के लाभों से परिचित करवाऊंगा।
2. स्वयं एक उत्तम हिन्दी माध्यम विद्यालय की स्थापना करके एक उदाहरण प्रस्तुत करूंगा।

2 टिप्‍पणियां:

संजय बेंगाणी ने कहा…

आप अपने उद्देश्यों में कामयाब हो, हमारी शुभकामनाएं आपके साथ है.
यह आपका ही दर्द नहीं है, हम सब इसे भोग रहे हैं. सच कहूँ हमारे बच्चे पढ़ जरूर रहें हैं पर क्या पढ़ रहे हैं यह उन्हे ही नहीं पता.

RC Mishra ने कहा…

कृपया 'पीढा़'(बैठने के लिये लकडी़ का आसन) को 'पीडा़'(दर्द, तकलीफ़) शब्द से बदल दीजिये।
आप अपने उद्देश्य मे सफ़ल हों यही हमारी चाहत है।