मोहम्मद नासिर अख्तर कोई छोटी मोटी शिख्सयत नहीं है। पाकिस्तानी सेना के कईं उच्च पदों को नवाजा है और आजकल भारत में अपने भूतपूर्व वायुसेनाध्यक्ष के साथ पधारे हुए हैं।
रीडिफ में छपे एक साक्षात्कार में उनके मुंह से निकल ही गया कि कारगिल पर उन्होंने आक्रमण इसलिये किया था ताकि भारत को शान्ति वार्ता के लिए मजबूर कर सकें। मुंह से निकल तो गया पर अब इसे सही भी करना था तो आखिर में यह वाक्य भी जोड़ गए कि आक्रमण मुजाहिदों ने किया था। खैर, वो कारगिल को अपना सफल अभियान मानते हैं।
मुझे अच्छे से याद है कि भारतीय सेना (जिसे अख्तर साहब हिन्दू सेना कह रहे हैं) कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों के शव पाकिस्तानियों को सौंप रही थी और उन्होंने ये शव लेने से मना कर दिया था। उसके बाद भारत की ”हिन्दू” सेना ने ही इस मुस्लिम सेना के सैनिकों का इस्लामिक रीति से अन्तिम संस्कार किया था। परन्तु अब समझ में मुझे यह नहीं आ रहा है कि क्या कोई सेना युद्ध में मारे गए अपने ही सैनिकों के शव लेने से मना कर देगी? सिर्फ इसलिए कि आक्रमण का इल्जाम उनके ऊपर ना आ जाए।
27.7.06
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3 टिप्पणियां:
घटिया लोगों से और क्या उम्मिद की जा सकती है
पधारो बंसल साहब ! स्वागत है हिन्दी चिट्ठाजगत में |
पाकिस्तान से अच्छाई की उम्मीद नहीं की जा सकती|
शांति वार्ता करवा के क्या हासिल हो गया उन्हें ?
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